krishna shloka | कस्तूरी तिलकं ललाट पटले वक्ष: स्थले कौस्तुभम् । नासाग्रे नव मौक्तिकं करतले वेणुं करे कंकणम् ॥


कस्तूरी तिलकं ललाटटले वक्ष: स्थले कौस्तुभम्

नासाग्रे नव मौक्तिकं करतले वेणु करे कंकणम्

सर्वांगे हरिचन्दनं च कलयं कण्ठे मुक्तावली

गोपस्त्री परिवेष्टितो विजयते गोपाल चूडामणि: ॥


हिन्दी मे अर्थ  

माथे पर कस्तूरी (कस्तूरी) के पवित्र चिह्न और छाती पर कौस्तुभ रत्न से विभूषित गोपाल को नमस्कार है, उनकी नाक एक चमकदार मोती से सुशोभित है, उनके हाथों की हथेलियों में एक बांसुरी है, उनके हाथ कंकणों से सुशोभित हैं, उनके पूरे शरीर पर चंदन का लेप लगा हुआ है, और उनकी सुंदर गर्दन मोतियों के हार से सुशोभित है, गोपीयो से घिरे हे गोपालों के मुकुट-मणि, आप उन गोपियों को मोक्ष देते हैं जो आपकी सेवा करती हैं आप की जय-जयकार हैं । 


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